Monday, February 21, 2011

दान का तुरंत फल.....एक प्रेरक कहानी...सत्य कहानी

एक बार एक राज कवि कहीं जा रहे थे, जेठ का तपता हुआ महिना था, रास्ते में उनको एक राहगीर मिला वो बहुत ही गरीब दिखाई दे रहा वो नंगे पैर चल रहा था. उसको देख कर राज कवि महोदय को बड़ी दया आई और उन्होंने अपनी जूतियाँ उतार कर उस व्यक्ति को दे दी.
कवि महोदय को नंगे पैर चलने की आदत नहीं थी उनके पैर जलने लगे परन्तु उनक मन में ये संतोष था की उन्होंने किसी की सेवा की किसी को कष्ठ से मुक्ति दिलवाई.
थोडा आगे जाने पे उनको एक हाथी मिला उसके महावत ने जैसे ही राज कवि को देखा उसने उनको प्रणाम किया और उनको हाथी पे बैठा लिया. थोडा आगे जाने पे उनको राजा मिला उसने देखा कि राज कवि हाथी पे नंगे पैर बैठे हुए है उन्होंने उनसे पूछा कि ऐसा क्यों राज कवि ने सारी बात राजा को कह सुनाई....राजा ने सोचा कि जूतियाँ दान करने से राज कवि को हाथी कि सवारी करने को मिली अगर में ये हाथी ही दान कर दूं तो पता नहीं मुझे उसका क्या क्या फल प्राप्त होगा...ऐसा विचार कर राजा ने कवि से कहा कि आज से ये हाथी जिस पे आप बैठे हुए हो ये आपका हुआ.

ये है दान का तुरंत फल....दान का फल हर किसी को प्राप्त होता है चाहे वो तुरंत हो या देर से.
इसीलिए हमेशा अपने ही सुख कि नहीं सोच कर आदमी को दुसरो के लिए भी कुछ करना चाहिए...आप किसी के लिए कुछ करते है किसी को कुछ देते है तो उसका पता नहीं कितने गुना आपको उसके बदले में प्राप्त होता है.

जय श्री कृष्ण